तक्षक बाबा के चौखट पर आते ही बेअसर हो जाता है साँपों का जहर

बाराचवर(यशवन्त सिंह): जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गाजीपुर-बलिया मार्ग पर बाराचवर विकास खण्ड का एक गाँव है विश्वम्भरपुर। यहाँ आज भी तक्षक नाग देवता की अलौकिक शक्ति वास करती है। सुनने में भले कुछ अटपटा लगे लेकिन यह सोलह आने सत्य है कि आज तक इस गाँव की परिधि में कोई भी व्यक्ति सर्पदंश से नहीं मरा है। हर साल सर्पदंश से पीड़ित हजारों लोग यहाँ तक्षक बाबा के दरबार में सिर्फ मत्था टेककर जीवनदान पाते हैं। प्रस्तुत है नाग देवता के यहाँ आने की पूरी कहानी…..
मुगल सल्तनत के दौरान जब औरंगजेब का शासन चल रहा था उस समय तलवार के बल पर धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा था। सीधे तौर पर कहा जाता था कि या तो इस्लाम कबूल करो नहीं तो मरने के लिये तैयार रहो।इस तरीके से बहुतों को मुसलमान बना दिया गया।लेकिन जो स्वाभीमानी और अपने धर्म पर अडिग रहने वाले थे उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।
उसी कालखंड में अजमतगढ(आजमगढ़) के काछी गांव में जोकि अब वर्तमान में मऊ जिले में है, दो भाई बान राय और फकीर राय का परिवार रहा करता था। उनके सामने भी धर्मपरिवर्तन करने का प्रस्ताव रखा गया। जिसे उन दोनों भाईयों ने ठुकरा दिया। इसके बाद मुगल सेना द्वारा उन्हें गिरफ्तार करके कारागार में डाल दिया गया। वहाँ भी अनेकों प्रकार की यातनाएं दी गयी। लेकिन उन दोनों भाईयों ने इस्लाम कबूल नहीं किया। तब उनके सर कलम करने का आदेश दे दिया गया। जिस दिन उन्हें मारे जाना था उससे पहले ही रात को कारागार में एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और उन दोनों भाईयों से वहाँ से निकल जाने को बोली।दोनों भाईयों ने पूछा कि आप कौन हैं तो जवाब मिला कि हम हैं………तक्षक नाग। उसी समय उन्होंने ध्यान दिया तो पता चला कि उनकी बेडियां खुल चुकी हैं। दोनों भाई उस दिव्य शक्ति के पीछे हो लिये। आगे जाने पर उन्होंने देखा कि कारागार के दरवाजे भी खुल चुके हैं और सारे पहरेदार बेहोश पड़े हैं।
वहाँ से निकल कर वह दोनों भाई अपने पूरे परिवार के साथ अपने रिस्तेदारों के पास विश्वम्भरपुर आ गये। यहाँ पहुँचा कर वह दिव्य शक्ति अदृश्य हो गयी।
यह वही तक्षक देवता थे जिन्होंने परीक्षित को शाप के कारण डंसा था। बाद में उन्होंने स्वयं प्रकट होकर बताया कि मैं आपलोगों की हमेशा सापों से रक्षा करता रहूँगा।
उसके बाद से जब भी किसी व्यक्ति को सांप काट लेते थे वह इस गांव में आते थे तथा तक्षक देव गाँव के ही किसी के सिर पर आकर उस व्यक्ति की सहायता करते थे। यह सिर पर आने का क्रम सैकड़ों वर्षों तक कई पीढ़ियों तक चलता रहा। लोग सर्पदंश से प्रभावित होकर जब भी आते तक्षक देव उस समय मौजूद व्यक्ति के सिर आकर बांये कान के माध्यम से जहर खींच कर उसे जीवन दान देते थे।
लेकिन बाद की पीढ़ियों में जब सात्विकता की कमी होने लगी तथा लोग समयाभाव के कारण हर समय गाँव में उपस्थित रहने में असमर्थ होने लगे तब तक्षक देव सिर आकर बोले कि आप लोग मुझे कोई स्थान दे दिजिये। वहीं मैं अपनी शक्तियों के माध्यम से लोगों के दुख दूर करता रहूँगा। लोगों ने कहा कि कहीऐ तो एक मंदिर का निर्माण करा दिया जाय?इस पर तक्षक देव बोले कि मुझे मंदिर की कोई आवश्यकता नहीं।मुझे अपने घर का ही कोई कोना दे दिजिये। इसके बाद ग्रामीणों के आग्रह पर बाबा ने अपनी शक्तियां एक घर के चौखट में समाहित कर दीं। तब से सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति उस चौखट पर ही सिर नवाकर ठीक होने लगे।जो आज भी विश्वम्भरपुर के श्री महादेव राय के दरवाजे पर मौजूद है।
जब बाबा अन्तिम बार सिर आये थे तो गाँव वालों ने आग्रह किया कि हम लोग आपकी पूजा करना चाहते हैं। बताईये हमलोग आपको क्या भोग चढ़ायें? इस पर बाबा ने कहा कि दूध और लावा मेरा प्रिय भोजन है। आपलोग नागपंचमी के दिन इक्कीस नाद में दूध और लावा चढ़ा कर मुझे खुश कर सकते हैं। गाँव वालों ने कहा कि बाबा हम लोग तो यह भोग चढ़ा लेंगे लेकिन आगे की पीढियों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।तब बाबा ने कहा कि आपलोग पलास के पत्ते का नाद बनाकर उसमें दूध लावा चढाईयें।
तबसे आज तक हर साल नागपंचमी के दिन बान राय और फकीर राय की पीढियां पलास के पत्ते का नाद बनाकर उसमें दूध लावा चढ़ाती आ रही हैं।
तक्षक बाबा कि महीमा की अगर बात की जाय तो कहीं भी कभी भी अगर आपको साप काट ले आप पूरी आस्था के साथ एक बार तक्षक बाबा का स्मरण करीये। आप तत्काल ठीक हो जायेंगे। लेकिन इसके बाद किसी भी प्रकार की दवा कराना आपके लिये कष्टदायक हो सकता है। नाम लेने के बाद आप सीधे बाबा की चौखट पर आकर सिर नवाईये और इसके बाद आप पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जायेंगे।पूरे साल यहाँ सर्पदंश से पीड़ित लोगों का तांता लगा रहता है।
लोग सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को बेहोशी की हालत में वाहन से या चारपाई पर लाद कर लाते हैं और कुछ ही देर में वह व्यक्ति अपने पैरों पर चल कर जाता है।बरसात के मौसम में जब आमतौर पर घरों में भी सांप निकलने लगते हैं तो लोग यहाँ चौखट पर पानी चढ़ा कर अपने घरों में ले जाकर उसका छिड़काव करते हैं जिससे सापों का दिखना बंद हो जाता है।
मत्था टेकने के अलावा यहाँ किसी भी प्रकार का चढ़ावा जैसे फूल, फल, रूपया-पैसा, कपड़ा, मिठाई इत्यादि चढ़ाना पूर्णतया निषेध है।
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