
सन 1826 में 30 मई को उदंत मार्तण्ड का पहली बार प्रकाशन हुआ था। जिसके सबकुछ यानि संपादक और मालिक दोनों ही जुगुल किशोर सुकुल जी थे। तबसे पत्रकारिता का जन्म माना जाता है।
हालांकि कुछ लोग श्री नारद मुनी को पत्रकार मानते है। लेकिन मेरा मानना है की वह सिर्फ झगड़ा लगाने वाले थे। जैसा कि देहात में चुगलखोर कहते हैं। उनका काम था देवतों की बातों को राक्षसो व राक्षसो की बातों को देवताओं तक पहुचाना। अब इसकी सजा भी वो भोग चुके हैं बन्दर का रूप पाकर। आप कहानियों में पढ़े होंगे।
मैं इसपर बात नहीं करूँगा। बात करूँगा आज की पत्रकारिता पर।
पिछले दो सालों से मैं खुद का न्यूज़ पोर्टल द सर्जिकल न्यूज़ चला रहा हूँ। कभी किसी से विज्ञापन नहीं मांगा। कोशिश रही है कि पब्लिक की बातों को उठाया जाए उनकी बातों को जिम्मेदार लोगों तक पहुंचाया जाए। बहुत हद तक सफल भी रहे हैं।
लेकिन बात आती है पब्लिक कप देने की कि हम पब्लिक को क्या दें? कोशिश रहती है सटीक और त्वरित खबरें हम लोकल लेवल पर भी दें। कोशिश जारी है।
आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मैंने कुछ पत्रकार साथियों को मैसेज किया कि आप पत्रकारिता दिवस पर जो कुछ भी कहना चाहते हैं कृपया लिख भेजिये साथ ही एक फ़ोटो भी भेजिएगा और किस संस्थान में कार्य करते हैं यह भी।
ताजुब्ब की बात है 3-4 लोगों को छोड़कर बाकियों ने मैसेज तो देखे लेकिन जबाब कुछ नहीं मिला। अब बताइये पत्रकारिता का स्तर कहाँ जा रहा है। कभी टीवी देखता हूँ तो तरस आता है (सरसरी निगाहों से) लेकिन आज और तरस आया। जब पत्रकार ही अपनी बात नहीं कहेगा तो कौन कहेगा? क्या वो बातें सिर्फ कहने के लिए हैं कि कलम की ताकत होती है? लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है पत्रकारिता वगैरह-वगैरह।
पत्रकारिता का स्तर लगातार गिरता ही जा रहा है। लोग लिखने से बचने लगे हैं। कॉपी पेस्ट ज्यादा होता है। कई अखबार तो ऐसे ही चलते हैं। इसके अलावा वीडियो पर ज्यादा ध्यान है। टीवी डिबेट है देख लीजिये कहाँ खड़ी है आज की पत्रकारिता समझ आ जाएगी।
जनता के मुद्दों से कम बल्कि इधर-उधर की बातों पर ज्यादा ध्यान है। यह ज्यादा ध्यान है कि किस देश के पास कौन से हथियार है? लेकिन यह ध्यान नहीं है कि जनता महंगाई से मर रही है पेट्रोल 100 रू है कड़ुवा (सरसो) तेल 200 रू0 से अधिक पर बिक रहा है।
सूचनाएं हैं ही नहीं और यह सूचनाएं यूं ही नहीं रोकी गई हैं। इसमें बड़ा खेल हुआ है। आरटीआई का नाम आप सबने सुन रखा होगा। आजकल आरटीआई का जबाब कितना मिलता है? और मैं दावे के साथ कह रहा हूँ भाजपा सरकार में आरटीआई का खौफ ही खत्म हो गया है। अन्यथा 2013-14 तक मैंने खुद अनुभव किया है आरटीआई भेजने पर सरकारी अधिकारियों की हालात पतली हो जाती थी।
लेकिन समय के साथ सब कुछ मैनेज हो गया। अब तो कुछ आरटीआई इसलिए भी भेजते हैं ताकि कुछ जेब गर्म हो जाए। वही हाल पत्रकारिता का भी है। जो थोड़े बड़े पत्रकार है। वह पोर्टल और यूट्यूबर को कुछ समझते नहीं थे अब हालत ये है कि उनको भी उसी पर आना पड़ा। मैं पर्सनली ऐसे लोगों को जनता हों जो आलोचना करते थे लेकिन खुद पोर्टल पर आ गए।
इस वक्त पत्रकारों की हालात अत्यंत बुरी है। कभी सच्ची खबर लगाने के लिए जान से मार दिए जाते हैं तो कभी जेल भेज दिया जाता है। कई बार तो फोन पर धमकियां भी दी जाती हैं। लेकिन यह हालत क्यों है?
मैं मानता हूँ कि पत्रकार इस वक्त खुद असहाय है। वह अपनी पत्रकार बिरादरी के साथ न्याय नहीं कर पा रहा है। एक दूसरे की टांग खींचने और नीचा दिखाने से फुरसत नहीं है। जबकि जरूरत है एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करने की सहतोग करने की। जब 20 से अधिक पत्रकारों को मैंने मैसेज किया और जबाब आता है सिर्फ 2-3 लोगों का तो समझिये कितने एकजुट हैं हम।
एक बात और जब भी कोई सिस्टम कमजोर होता है उसका जगह कोई न कोई ले लेता है। पत्रकारिता को भी जनता अपने हाथ में ले रही है। सोशल मीडिया पर खुद जनता पत्रकार बन चुकी है। अब भी समय है मित्रों संभलिए। खैर आप सभी को हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
(नोट- इस लेख में किसी की भावनाओं को ठेस पहचाने की कोशिश नहीं की गई है लेकिन यदि ऐसा होता है तो इसके लिए खेद है।)