कुंडली मे क्यों होता हैं काल सर्प योग? इस से क्या है हानि?

जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु और केतु के एक ही और स्थित हों तो ऐसी ग्रह स्थिती को कालसर्प योग कहते है। कालसर्प योग एक कष्ट कारक योग है। सांक ज्योतिषशात्र में इस योग के विपरीत परिणाम देखने में आते है। प्राचीन भारतीय ज्योतिषशात्र कालसर्प योग के विषय में मौन साधे बैठा है। आधुनिक ज्योतिष विद्वानों ने भी कालसर्प योग पर कोई प्रकाश डालने का कष्ट नहीं उठाया है कि जातक के जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है ?
वास्तव में राहू केतु छायाग्रह है। उनकी उपनी कोई दृष्टी नही होती। राहू का जन्म नक्षत्र भरणी और केतू का जन्म नक्षत्र आश्लेषा हैं। राहू के जन्म नक्षत्र भ्ारणी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सूर्य है। राहु -केतु के जो फलित परिणाम मिलते हैं, उनको राहु केतु के नक्षत्र देवों मे नामों से जोडकर कालसर्प योग कहा जायेगा तो इसमें अशास्त्री या समस्या कया है ?
राहु के गुण -अवगुण शनि जैसे हैं ।
राहु जिस स्थान में जिस ग्रह के योग में होगा, उसका व शनि का फल देता है । शनि आध्यात्मिक चिंतन, विचार, गणित के साथ आगे बढने के गुण अपने पास रखता है। यही बात राहु की है।
राहु का योग जिस ग्रह के साथ है वह किस स्थान का स्वामी है यह भी अवश्य देखना चाहिए। राहु मिथुन राशि में उच्च, धनु राशि में नींच और कन्या राशि में स्वागृही होता है राहू के मित्र ग्रह-शनि, बुध और शुक्र है। रवि-शनि, राहु इसके शत्रु ग्रह है। चन्द्र, बुध, गुरु उसके समग्रह है । कालसर्प योग जिस व्यक्ती के जन्मांग में है, ऐसे व्याक्ति को अपने जीवन में बहुत कष्ट झेलना पडता है । इच्छित फल प्राप्ति और कार्यो में बाधाएं आती है। बहुत ही मानसिक, शारीरीक एवं आर्थिक रुप से परेशान रहता है।
कालसर्प योग से पीड़ित जातक का भाग्य प्रवाह राहु केतु अवरुध्द करते है। जिसके परिणामस्वरुप जातक की प्रगति नही होती। उसे जीवीका चलाने का साधन नहीं मिलता अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्यायें पैदा होती है। जिससे उसको जिविका चलानी मुश्किल हो जाती है। विवाह नही हो पाता। विवाह हो भी जाए तो संतान-सुख में बाधाएं आती है।
कालसर्प योग कारण एवं निवारण वैवाहीक जीवन मे कलहपुर्ण झगडे आदि कष्ट रहते हैं। हमेशा कर्जां के बोझ में दबा रहाता है और उसे अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पडते है। दुर्भाग्य जाने अन्जाने में किए गए कर्मो का परिणाम दुर्भाग्य का जन्म होता है।
दुर्भाग्य चार प्रकार के होते है- अधिक परिश्रम के बाद भी फल न मिलना धन का अभाव बने रहना।
शारीरीक एवं मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा उत्पन्न होती है। अपने जीवीत तन का बोझ ढाते हुए शीघ्र से शीघ्र मृत्युत की कामना करता है। संतान के द्वारा अनेक कष्ट मिलते है। बदचनल एवं कलहप्रिय पति या पती का मिलना है। उपरोक्त दुर्भाग्य के चारों लक्षण कालसर्प युक्त जन्मांग में पूर्ण रूप से दृष्टिगत होते है।
कालसर्प योग से पिडित जातक दुर्भाग्य से मूक्ति पाने के लिए अनेक उपायो का सहारा लेता है वह हकीम वैद्य डॉक्टरों के पास जाता है। धन प्राप्ति के अनेक उपाय करता है बार बार प्रयास करने पर भी सफलता नही मिलने पर अंत में उपाय ढुंढने के लिए वह ज्योतिषशात्र का सहारा लेता है। अपनी जन्म पत्री मे कौन कौन से दोष है कौन कौन से कुयोग से है उन्हें तलाशता है पुर्वजन्मि के पितृशाप, सर्पदोष, भातृदोष ब्रम्हडदोष आदि दोष कोई उसकी कुंडली में है – कालसर्प योग।
कोई माने या न माने कालसर्प योग होता है। किसी के मानने या न मानने से शास्त्री य सिध्दांत न कभी बदले थे औ न ही बदलेंगे । शात्र्य आखिर शात्र्य हैं इसे कोई माने या न माने इससे कोई अन्तर नही पडता । कालसर्प योग प्रमाणित है इसे प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
ज्योतिष शास्त्रों का अध्ययन करने वाले आचार्यां ने सर्प का मूख राहु और पुंछ केतु इन दोनों के मध्यं में सभी ग्रह रहने पर उत्पन्न होने वाली ग्रह स्थिती को कालसर्प योग कहा है । यह कालसर्प योग मुल रुप से सर्पयोग का ही स्वरूप है।
जातक के भाग्य का निर्णय करने में राहु केतु का महत्वपूर्ण योगदान है। तभी तो विंशोत्तरी महादशा में 18 वर्ष एवं अष्टोत्तेरी महादशा मे 12 वर्ष राहु दशा के लिए हमारे आचार्या ने निर्धारित किए है। दो तमोगूणी एवं पापी ग्रहो के बीच अटके हुए सभी ग्रहो की स्थिती अशुभ होती है । कालसर्प योग से पिडित जातक का अल्पायु होना, जीवनसंघर्षपुर्ण रहना, धनाभाव बने रहना, भौतिक सुखौ की कमी राहना ऐसे फल मिलते है। नक्षत्र पध्दति के अनुसार राहु या केतु के साथ जो ग्रह हों और एक ही नक्षत्र में हो तो अशूभ परिणामों की तीव्रता कम होती है। राहु केतु छायाग्रह होते हुए भी नवग्रहो में उनको स्थान दिया गया है।
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